मणिकर्णिका rani of jhansi

बहादुरी, देशभक्ति और सम्मान की प्रतीक jhansi ki rani laxmi bai और jhansi ki rani story को हिंदी में पढ़े और jhansi ki rani history या फिर rani laxmi bai information और gangadhar rao के बारे में भी बताया गया है और आप इस post में  jhansi ki rani poem  की poem को भी read कर सकते है .



झाँसी की रानी:-


रानी लक्ष्मी बाई के बारे में तथ्य और जानकारी

 जन्म                                                मणिकर्णिका तांबे, 19 नवंबर 1828
 जन्म स्थान                                        वाराणसी, भारत
 राष्ट्रीयता भारतीय
 पिता                                                मोरोपंत तांबे
 माता                                                भागीरथी
 मृत्यु                                               18 जून 1858 (29 वर्ष), भारत के ग्वालियर के पास कोटा के सराय में
                                                             पति झांसी नरेश महाराजा गंगाधर रावनेवालकर
 संतान                                               उन्होंने एक लड़के को जन्म दिया, जिसकी चार महीने की उम्र में                                                                       मृत्यु हो गयी, उसके बाद 1851 में दामोदर राव को गोद लिया,
 शिक्षा                                               उन्होंने अपनी शिक्षा घर पर प्राप्त की थी और अपने उम्र के अन्य                                                                    लोगों से अधिक आत्मनिर्भर थी; उनके अध्ययन में निशानेबाजी,                                                                     घुड़सवारी और तलवारवाजी शामिल थी।
योगदान के रूप में जाना जाता है         लक्ष्मीबाई
 पुरस्कार और सम्मान                         हिंदुओं की देवी लक्ष्मी का सम्मान


हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए बहुत से राजाओं ने लड़ाइयाँ लड़ी और इस कोशिश में हमारे देश की वीर तथा साहसी स्त्रियों ने भी उनका साथ दिया इन वीरांगनाओ में रानी दुर्गावती रानी, लक्ष्मीबाई आदि का नाम शामिल है.

रानी लक्ष्मीबाई का पूरा नाम है मणिकर्णिका तांबे शादी के बाद इनका नाम लक्ष्मीबाई हो गया था.  इनका जन्म सन 19 नवम्बर 1828 को हुआ था इनकी म्रत्यु सन 18 जून 1858 में हो गई थी इनके पिता का नाम है मोरोपंत तांबे इनकी माता का नाम था भागीरथी सापरे इनके पति झाँसी नरेश महाराज गंगाधर राव नेवालकर थे इनकी संतान दामोदर राव (आनंद राव) इनका घराना मराठा साम्राज्य उल्लेखनीय कार्य सन 1857 का स्वतंत्रता संग्राम.
Read More 
https://www.scoop.it/u/holly-melody/curated-scoops
https://flipboard.com/@AparnaPatel2019
https://start.me/p/PwE8dv/india-travel-guide
https://padlet.com/HollyMelody/InterestingFacts


महारानी लक्ष्मीबाई का जन्म एक महाराष्ट्रियन ब्राह्मण परिवार में सन 1828 में काशी में हुआ उनके पिता मोरोपंत तांबे बिठुर में न्यायालय में पेशवा थे और इसी कारण वे इस काम में प्रभावित थी और उन्हें अन्य लड़कियों की अपेक्षा अधिक स्वतंत्रता भी प्राप्त थी उनकी शिक्षा-दीक्षा में पढाई के साथ-साथ आत्मरक्षा घुड़सवारी, निशानेबाजी और घेराबन्धी का प्रक्षिशन भी शामिल था उन्होंने अपनी सेना भी तयार की थी उनकी माता भागीरथी बाई ग्रेह्नी थी उनका नाम बचपन में  मणिकर्णिका रखा गया और परिवार के सदस्य उन्हें प्यार से मनु कहकर पुकारते थे जब वे 4 साल की थी तभी उनकी माता का देहांत हो गया था और उनके पालन-पोषण की साड़ी जिम्मेदारी उनके पिता पर आ गई थी रानीलक्ष्मीबाई में अनेक विशेषताएँ थी जैसे:- नियमित योगा अभ्यास करना, धार्मिक कार्यों में रुचि .................... उहे घोड़ो की अच्छी परख थी रानी लक्ष्मीबाई अपने प्रजा का बहुत अच्छे से ख्याल रखती थी गुन्हेगारों को उचित सजा देने की भी हिम्मत रखती थी रानी लक्ष्मीबाई की शादी सन 1842 में उनका विवाह उत्तर भारत में स्थित झाँसी राज्य के महाराज गंगाधर राव नेवालकर के साथ हो गया तब वह झाँसी की रानी बनी उस समय वह मात्र 14 साल की थी विवाह के पश्चात ही उन्हें लक्ष्मीबाई नाम मिला उनका विवाह प्राचीन झाँसी में सिद्ध गणेश मंदिर में हुआ था सन 1891 में उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम दामोदर राव रखा गया परन्तु दुर्भाग्य वश वह 4 महीने ही जीवित रह सका ऐसा कहा जाता है की महाराज  गंगाधर राव नेवालकर अपने पुत्र की म्रत्यु से कभी उभर ही नहीं पाए और सन 1853 में महाराज बहुत ही बीमार पड़ गए तब उन दोनों ने मिलकर अपने रिश्तेदार महाराज गंगाधर राव के भाई के पुत्र को गोद लिया इस प्रकार गोद लिए गए पुत्र के उत्तराधिकारी पर ब्रिटिश सरकार कोई आपत्ति ना ले इसलिए वह कार्य ब्रिटिश अफसरों की उपस्थिति में पूर्ण किया गया इस बालक का नाम आनंद राव था जिसे बाद में बदलकर दामोदर राव रखा गया रानी लक्ष्मीबाई का उत्तराधिकारी बनना 21 नवम्बर सन 1853 में महाराज गंगाधर राव नेवालकर की म्रत्यु हो गई उस समय रानी की आयु मात्र ही 18 वर्ष की थी लेकिन रानी ने अपना धैर्य और साहस नहीं खोया और बालक दामोदर की आयु कम होने के कारण राज्य काज का उत्तरदाय्तव  महारानी लक्ष्मीबाई ने स्वयं पर ले लिया उस समय लार्ड डलहौज़ी गवर्नर थे और उस समय ये नियम था की शाशन पर उत्तराधिकारी तभी होगा जब राजा का स्वयं का पुत्र हो यदि पुत्र ना हो तो उसका राज्य East India Company में मिल जाएगा और राज्य परिवार को अपने  खर्चे हेतु पेंशन  दी जाएगी उसने महाराज की म्रत्यु का फ़ायदा उठाने की कोशिश की वह झाँसी को ब्रिटिश राज्य में मिलाना चाहता था उसका कहना था की महाराज गंगाधर राव नेवालकर और महारानी लक्ष्मीबाई की अपनी कोई संतान नहीं है और उसे इस प्रकार गोद लिए गए पुत्र को राज्य व उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया तब महारानी लक्ष्मीबाई ने london में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुकदमा दायर किया पर वहां उनका मुकदमा ख़ारिज कर दिया गया साथ ही ये आदेश भी दिया गया की महारानी झाँसी के किले को खाली कर दे और स्वयं रानी महल में जाकर रहे इसके लिए उन्हें रूपए 60,000 की पेंशन दी जाएगी परन्तु रानी लक्ष्मीबाई अपनी झाँसी को ना देने फैसले पर अड़ी रही वह अपने झाँसी को सुरक्षित करना चाहती थी जिसके लिए उन्होंने सेना संगठन को प्रारम्भ किया.

संघर्ष की शुरुआत :-

7 मार्च 1854 को ब्रिटिश सरकार ने एक सरकारी गजट जारी किया जिसके अनुसार झाँसी को  ब्रिटिश साम्रराज्य में मिलने का आदेश दिया गया था रानी लक्ष्मीबाई को ब्रिटिश अफसर एलिस द्वारा ये आदेश मिलने पर उन्होंने इसे मानने से इनकार कर दिया और कहा मेरी झाँसी नहीं दूंगी अब झाँसी विद्रोह का केंद्र बिंदु बन गया रानी लक्ष्मीबाई ने कुछ अन्य राज्यों की मदद से एक सेना तयार की जिसमे केवल पुरुष ही नहीं अपितु महिलाएं भी शामिल थी जिन्हें युद्ध में लड़ने के लिए प्रक्षिशन भी दिया गया था उनकी सेना ने अनेक महारथी भी थे जैसे :- गुलाम गोस, दोस्त खान, खुदा बक्श, सुन्दर-मुन्दर काशीबाई, लाल भाऊ बक्षी, मोती बाई, दीवान रघुनाथ सिंह ओए दीवान जवाहर सिंह जैसे नाम शामिल थे. लगभग 14,000 सैनिक थे.


10 मई 1857 को मेरठ में भारतीय विद्रोह प्रारम्भ हुआ जिसका कारण था की जो बंदूकों की नइ गोलियां थी उस पर सुआर और गौ मॉस की परत चड़ी थी इससे हिन्दुओं की धर्मिक भावनाओं पर ठेस लगी थी और इस कारण ये विद्रोह देश भर में फ़ैल गया था इस विद्रोह को दबाना ब्रिटिश सरकार के लिए ज्यादा जरुरी था  अतः उन्होंने फिलहाल झांसी को रानी  लक्ष्मीबाई के अधीन छोड़ने का निर्णय लिया था इस दौरान सन सितम्बर-अक्टूबर 1857 में रानी लक्ष्मीबाई को अपने पड़ोसी देश को "ओरछा" और "दतिया" के राजाओं के साथ युद्ध करना पड़ा क्यूंकि उन्होंने झाँसी पर चढाई कर दी थी इसके कुछ समय बाद मार्च 1858 में अंग्रेजो ने झाँसी पर हमला कर दिया और तब झाँसी की ओर से तात्य टोपे के नेत्रत्व में 20,000 सैनिक के साथ ये लड़ाई लड़ी गई जो लगभग 2 सप्ताह तक चली अंग्रेजी सेना की दीवारों को तोड़ने में सफल रही और नगर पर कब्ज़ा कर लिया इस समय अंग्रेज सरकार झांसी को हथियाने में कामयाब रही और अंग्रेजी सैनिको और लूट-पाट भी शुरू कर दी थी फिर भी रानी लक्ष्मीबाई किसी प्रकार अपने पुत्र दामोदर राव को बचाने में सफल रही.

कालपी की लड़ाई :-

हार जाने के कारण उन्होंने सत्त 24 घंटे में 102 मील तय किया और अपने डाल के साथ कालपी पहुंची और कुछ समय कालपी में शरण ली जहां वह  तात्य टोपे के साथ थीं तब वहां के पेशवा ने परिस्थिति को समझकर उन्हें शरण दी और अपना सैन्य बल भी प्रदान किया 22 मई 1858  को सर ह्यूरोज ने कालपी पर आक्रमण कर दिया था तब रानी लक्ष्मीबाई ने वीरता और रणनीति पूर्वक उन्हें परास्त किया और अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा कुछ समय पश्चात  का हार जाने के कारण सर ह्यूरोज ने कालपी पर फिर से हमला किया और इस बार रानी को हार का सामना करना पड़ा युद्ध में हारने के पश्चात राव साहेब पेशवा बंदा के नवाब तात्य टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, और अन्य मुख्य योद्धा गोपाल नूर एक मात्र हुए रानी ने ग्वालियर पर अधिकार प्राप्त करने का सुझाव दिया ताकि वह अपने लक्ष्य में सफल हों सके वही रानी लक्ष्मीबाई और तात्य टोपे ने इस प्रकार गठित एक विद्रोही सेना के साथ मिलकर ग्वालियर पर चढाई कर दी वहाँ इन्होने ग्वालियर के महाराजा को परासित किया और रणनीतिक तरीके से ग्वालियर के जिले पर जीत हासिल की और ग्वालियर का राज्य पेशवा को शोंप दिया.


रानी लक्ष्मीबाई की म्रत्यु  :-

17 जून 1858 में किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ युद्ध लड़ते समय उन्होंने ग्वालियर के पूर्व क्षेत्र का इस युद्ध में इनकी सेविकाएँ तक शामिल थीं और पुरुषों की पोषक धारण के साथ ही उतनी ही वीरता से युद्ध भी कर रहीं थी इस युद्ध के दौरान वे अपने राज-रतन नामक घोड़े पर सवार नहीं थी और ये घोड़ा नया था जो नहर के उस पार नहीं कूद पा रहा था रानी स्थिति को समझ गई और वीरता के साथ यहीं युद्ध करती रहीं इस समय वह पूरी तरह से घायल हो चुकीं थी और वह घोड़े पर से गिर पड़ी क्यूंकि वह पुरुष पोशाक में थी अतः उन्हें अंग्रेजी सैनिक पहचान नहीं पाए और उन्हें छोड़ दिया तब रानी के विश्वाश पात्र सैनिक उन्हें पास की गंगादास मठ में ले गए और उन्हें गंगाजल दिया तब उन्होंने अपनी अंतिम इच्छा बताई की कोई भी फिरंगी उनकी म्रत्यु को हाथ ना लगाए इसीलिए उन्होंने एक संत को कहा था की उनका डाह संस्कार कर दे. 17 जून 185 8 को उनका देहांत हो गया.


उनकी इच्छा के अनुसार उनके शव का दाह संस्कार 18 जून 1858 को किया गया इस प्रकार कोटा की सराई के पास ग्वालियर के फूल बाग़ क्षेत्र में उन्हें वीर गति प्राप्त हुई अर्थात वह म्रत्यु को प्राप्त हुई ब्रिटिश सरकार ने 3 दिन बाद ग्वालियर को हथिया लिया उनके म्रत्यु के पश्चात उनके पिता मोरोपंत तांबे को गिरफ्तार कर लिया और फांसी की सजा दी गई रानी लक्ष्मीबाई के पुत्र दामोदर राव को ब्रिटिश राज्य द्वारा पेंशन दी गई और उन्हें उनका उत्तराधिकारी कभी नहीं मिला बाद में राव इंदौर शहर में बस गए और उन्होंने अपने जीवन का बहुत समय अंग्रेज सरकार को मनाने एवं अपने अधिकारों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों में व्यतीत किया और उनकी म्रत्यु 28 मई 1906 को हो गई इस प्रकार देश को स्वतंत्रता दिलाने के लिए उन्होंने अपनी जान तक न्योछावर कर दी.
खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी.



झाँसी की रानी poem

सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसकी याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवार।
महाराष्टर-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताएँ
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुभट बुंदेलों की विरुदावलि सी वह आयी झांसी में,
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव से मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्णा रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठुर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक की कौन बिसात?
जबकि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी रोयीं रिनवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपूर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

सुभद्रा कुमारी चौहान की कविताएँ
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपूर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपूर, कोल्हापूर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

विजय मिली, पर अंग्रेज़ों की फिर सेना घिर आई थी,
अबके जनरल स्मिथ सम्मुख था, उसने मुहँ की खाई थी,
काना और मंदरा सखियाँ रानी के संग आई थी,
युद्ध श्रेत्र में उन दोनों ने भारी मार मचाई थी।
पर पीछे ह्यूरोज़ आ गया, हाय! घिरी अब रानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवार,
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।
घायल होकर गिरी सिंहनी उसे वीर गति पानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

रानी गई सिधार चिता अब उसकी दिव्य सवारी थी,
मिला तेज से तेज, तेज की वह सच्ची अधिकारी थी,
अभी उम्र कुल तेइस की थी, मनुज नहीं अवतारी थी,
हमको जीवित करने आयी बन स्वतंत्रता-नारी थी,
दिखा गई पथ, सिखा गई हमको जो सीख सिखानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

जाओ रानी याद रखेंगे ये कृतज्ञ भारतवासी,
यह तेरा बलिदान जगावेगा स्वतंत्रता अविनासी,
होवे चुप इतिहास, लगे सच्चाई को चाहे फाँसी,
हो मदमाती विजय, मिटा दे गोलों से चाहे झाँसी।
तेरा स्मारक तू ही होगी, तू खुद अमिट निशानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
                                - सुभद्रा कुमारी चौहान


ऐसे ही और भी post को पढ़े 

dr. bhim rao ambedkar - story 
rajat sharma  -  real life inspirational stories in hindi



Comments

Popular posts from this blog

पाइल्स का इलाज रामबाण इलाज piles treatment in hindi

इस तरह करे बात लड़की तुम्हे ऑनलाइन खोजेगी whatsapp par ladki kaise pataye hindi

बवासीर को जड़ से मिटाय piles in hindi