सारागढ़ी की लड़ाई story in hindi

आज हम एक ऐसी लड़ाई के बारे में बात करेंगे जो भारतीय इतिहास में कभी नहीं भुलाई जा सकती battle of saragarhi in hindi में अक्षय कुमार की आने वाली फिल्म battle of saragarhi movie इसी इतिहास पर है कैसे 21 सिक्खों ने 10000 अफगानों को हराया movie sons of sardaar the battle of saragarhi अजय देवगन की फिल्म son of sardar का सिक्वल सारागढ़ी की एतिहासिक लड़ाई की कहानी पर ही आधारित होगा story in hindi और battle of saragarhi in hindi story या real life inspirational stories in hindi में read करें.



The battle of saragarhi :-

एतिहास की सबसे बड़ी लड़ाई भारतीय इतिहास में सारागढ़ी की लड़ाई सबसे बड़ी लड़ाई मानी जाती है 
unesco ने इस लड़ाई को दुनिया की सबसे सबसे बेहतरीन 5 लड़ाइयों में शामिल किया है सारागढ़ी की ये कहानी आपको जल्द ही फ़िल्मी परदे पर देखने को मिलेगी.
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सारागढ़ी हिंदुकुश पर्वतमाला में स्थित एक चोट गाँव है जो आज पाकिस्तान में है ब्रिटिश शाशन में 36 सिख रेजीमेंट सारागढ़ी चौकी पर तैनात थे अफ्गानिस्तान से लगने वाले इस इलाके पर कब्ज़ा बनाए रखने के लिए अंग्रेज सेना यहाँ तैनात की गई थी ये चौकी रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण थी जो गुलिस्तान और लाकहार्ट किले के बीच में स्थित एक पहाड़ी पर थी.


इस इलाके में अक्सर कब्जी को लेकर अफगानों और अंग्रेजों के बीच लगातार लड़ाइयाँ होती रहती थी.
ये चौकी उन दिनों किलो के बीच एक communication network का काम करती थी british intelligence उस समय स्थानीय कबीलायी विद्रोहियों की बगावत को भाप न सके.
11 september 1897 में आफ्रिदी और अफगानों ने हाथ मिला लिया 27 अगस्त से 11 सितम्बर 1897 के बीच इन विद्रोहियों ने असंगिठित रूप से किले पर दर्जनों हमले किये लेकिन वीर सीखो ने उनके सारे आक्रमण विफल कर दिए आखिर में 12 september 1897 को करीब 12 से 14 हजार दुश्मनों ने सारागढ़ी के सिग्नलिंग पोस्ट पर हमला कर दिया.
वे गुलिस्तान और लोखार्ट के किलोँ पर कब्जा करना चाहते थे इन किलों का महाराजा रणजीत सिंह ने बनवाया था इस किले पर 36वें  रेजीमेंट के 21 जवान तैनात थे हमले की शुरुआत होते ही signal  incharge सरदार गुरमुख सिंह ने Lt.Col. जॉन होफ्टन ब्रिटिश को होलोग्राम पर हमले की सुचना दी लेकिन वो सेना भेजने में असमर्थ रहे अंग्रेज अधिकारी कर्नल जॉन होफ्टन ने तुरंत सिख सिपाहियों को किला छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर जाने को कहा लेकिन इशर सिंह समेत तभी 21 शूरवीर सैनिकों ने किले को दुश्मन की हाथों में सोंप कर हार स्वीकार करने की बजाए कबीलायी पठानों से मुकाबला करने का फैसला किया और उस अंग्रेज  अधिकारी की बातों को नज़रंदाज़ कर दिया.


दुश्मनों ने इस तरीके से जाल बिछाया था की पास के किलो से मदद तक नहीं ली जा सकती थी बताया जाता है की अफगानों ने हमले के बाद इन सिपाहियों से पोस्ट खाली करके आत्मसमर्पण करने को कहा था लेकिन इन सिपाहियों ने सिख परम्पराओं को अपनाते हुए मरते दम तक दुश्मनों से लड़ने का फैसला किया इशर सिंह के नेत्रत्व में तैनात इन 20 जनों को पहले ही पता चल गया की 12000 अफगानों से जिंदा बचना नामुमकिन है फिर भी ये जवान लड़ाई में जुट गए लांस नायक, लाभ सिंह और भगवान सिंह ने अपनी रायफल उठा ली और दुश्मनों को गोलियों से भूनते हुए आगे बड़े हजारों की संख्या में आए अफगानी पठानों की गोली का पहला शिकार बने भगवान सिंह जो की मुख्य द्वार पर सुख्मानो को रोक रहे थे उधर सीखो के होसलों से पठानों की कैंप में हडकंप मच गया था उन्हें ऐसा लगा की किले के अन्दर अभी भी कोई बड़ी सेना मौजूद है उन्होंने किले पर कब्ज़ा करने के लिए दो बार उसकी दीवार तोड़ने की कोशिश भी की लेकिन वे कामयाब नहीं हो सके हवलदार इशर सिंह ने नेतृत्व सम्भालते हुए अपनी टोली के साथ "जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल"  लगाया और दुश्मनों से जमकर लड़ाई लड़ी उन्होंने बिना हथियार के ही 20 से अधिक अफगानों को मौत के घाट उतार दिया
एक-एक करके वीर सिपाही कम होते जा रहे थे लेकिन उनके हौसलों में कोई कमी नही आई थी गुरमुख सिंह ने अंग्रेज अधिकारी से कहा की हम भले ही संख्या में कम होते जा रहे है लेकिन जब तक हमारे शरीर में खून का एक भी कतरा रहेगा तब तक हम लड़ेंगे इतना कहकर वे भी जंग में कूद पड़े वीर सपूतों ने मौर्चा संभाल रखा था और दुश्मनों पर भरी पड़ रहे थे गोली बारूद खत्म होने पर उन्होंने हाथो और संगीनों से आमने-सामने की लड़ाई लड़ी और लड़ाई लड़ते-लड़ते सुबह से रात हो गई और आखिरकार 20 वीर सिपाही शहीद हो गए.
सारागढ़ी पर बचे आखरी सिपाही गुरमुख सिंह ने सिग्नल टावर के अन्दर से लड़ते हुए 20 अफगानों को मार गिराया जब अफगान गुरमुख सिंह पर काबू नहीं कर पाए तो उन्होंने टावर में आग लगा दी और गुरमुख जिंदा ही जल कर शहीद हो गए जी ते जी उन्होंने दुश्मनों के आगे अपना सर नहीं झुकाया बताया जाता है की शहीद होने वालो में से एक सिख रसोइया भी था जो अपनी अंतिम सांस तक दुश्मनों से लोहा लेता रहा था आखिरकार अफगानों ने सारागढ़ी पर कब्ज़ा तो किया लेकिन अफगानियों को इस लड़ाई में भारी नुकसान सहना पड़ा लड़ाई लड़ते-लड़ते वे पूरी तरह से  थक गए थे और तय रणनीति से भटक गए.
अगले दिन आए अंग्रेजो की दस्ते ने अफगानों को हराकर फिर से सारागढ़ी पर कब्ज़ा कर लिया अंग्रेजो के फिर से कब्जे के बाद सिख सैनिको की बहादुरी दुनिया के सामने आई अंग्रेज सैनिकों को वहां अफगानों की एक हज़ार की आस-पास लाशें मिली 12 september 1897 को सिख लैंड की धरती पर हुआ यह युद्ध दुनिया की पांच महानतम लड़ाइयोँ मेँ गिनी गई.


जब ये खबर यूरोप पहुंची तो पूरी दुनिया चकित रह गई ब्रिटेन की संसद में सभी ने खड़े होकर इन 21 वीरों की बहादुरी को सलाम किया इन सभी को मरणोपरांत इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट दिया गया जो आज के परमवीर चक्र के बराबर था बाद मे लड़ाई के इस मार्ग रूप में अंग्रेजो ने अमृतसर, फिरोजपुर और वज्रिस्तान में 3 गुरूद्वारे बनवाए.
ब्रिटेन में आज भी सारागढ़ी की जंग को शान से याद किया जाता है इतिहास कारों के मुताबिक पाकिस्तान की नॉर्थ फ्रंटियर पोस्ट के जिला कोहार में करीब 6000 फ़ीट ऊँची पहाड़ीयों पर सारागढ़ी नाम का छोटा सा किला आज भी मौजूद है.
मौजूदा समय में पाकिस्तानी सेना द्वारा सिग्नल स्टेशन के तौर पर इसका इस्तेमाल किया जा रहा है भारतीय सेना की आधुनिक सिख रेजीमेंट 12 september को हर साल सारागढ़ी दिवस मानाती  है यह दिन उत्सव का होता है जिसमे सारागढ़ी के शूरवीरों  की पराक्रम और बलिदान के सम्मान में जश्न मनाया जाता है.
2012 में आई अजय देवगन की फिल्म son of sardar का सिक्वल सारागढ़ी की एतिहासिक लड़ाई की कहानी पर ही आधारित होगा साथ ही राज कुमार संतोषी भी इसी कहानी पर the battle of saragarhi नाम से फिल्म बना रहे है.
सारागढ़ी की पढाई यूरोप के सभी स्कूल में पढाई जाती है लेकिन हमारे दश में इसे जानते तक नहीं आपने greek sparta and persian war के बारे में तो सुना ही होगा जिसके ऊपर three hundred जैसी movie भी बन चुकी है इस लड़ाई के आगे spartans की लड़ाई भी फीकी पड़ जाती है पर बहुत ही अफ़सोस होता है की जो बात हम भारतियों को पता होनी चाहिए उसके बारे में हम जानते तक नहीं बेखबर है और इसके बारे में बहुत ही कम लोग जानते है.

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